भीष्म साहनी के उपन्यास ‘तमस’ का महत्त्व।

भीष्म साहनी के उपन्यास ‘तमस’ का महत्त्व। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 5 ग)


उत्तर :

‘तमस’ प्रेमचंदोत्तर उपन्यास विधा की सामाजिक यथार्थवादी शाखा के प्रमुख उपन्यासकार भीष्म साहनी द्वारा लिखित है। यह उपन्यास 1947 में पंजाब में हुए सांप्रदायिक दंगों पर आधारित है, इसी संदर्भ में उपन्यास में भारत की सांप्रदायिकता की समस्या का यथार्थ प्रस्तुत किया है।
हिन्दी उपन्यास परंपरा में तमस उपन्यास का महत्त्व सांप्रदायिकता की समस्या के संदर्भ में कई मार्मिक व अनछूए पहलुओं को उजागर करने में है। उपन्यास में दंगों के समय अंग्रेज़ अफसर रिचर्ड द्वारा बरती गई उदासीनता के माध्यम से दिखाया गया है कि सांप्रदायिकता की समस्या वस्तुतः ब्रिटिश सरकार की कारगुज़ारियों का ही परिणाम है।
भीष्म साहनी पात्रों और घटनाओं के माध्यम से यह भी दिखाते हैं कि सांप्रदायिकता की समस्या प्रत्येक संप्रदाय में किसी-न-किसी मात्रा में विद्यमान होती है। हाँ, यह भी सत्य है कि इसकी प्रकृति सभी धर्मों में समान रूप से पाई जाती है, उसका चरित्र समान होता है।
इसी प्रकार, भीष्म साहनी उद्घाटित करते हैं कि धर्मान्धता और कट्टरता पीढ़ी-दर-पीढ़ी संक्रमित होती हैं। और इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने वोट बैंक व दलीय हितों की पूर्ति के लिये इन्हें ज़िंदा रखा जाता है। 
‘तमस’ में नत्थु चमार के माध्यम से इस सत्य का भी उद्घाटन किया गया है कि सांप्रदायिक घृणा व हिंसा का शिकार अक्सर समाज का निम्न व गरीब तबका होता है। साथ ही, इस वर्ग का ही उपयोग सांप्रदायिकता फैलाने हेतु किया जाता है।
यह कहना सच ही होगा कि ‘तमस’ उपन्यास में सांप्रदायिकता की समस्या से संबंधित जो गहरे विश्लेषण व यथार्थ की दृष्टि अपनाई गई है उसी कारण यह उपन्यास आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। 
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