Battle of Ambur (अंबूर की लड़ाई)

 अंबूर की लड़ाई द्वितीय कर्नाटक युद्ध की पहली बड़ी लड़ाई थी। मुज़फ़्फ़र जंग द्वारा शुरू किया गया था और जोसेफ़ फ्रांस्वा डुप्लेक्स द्वारा समर्थित और चंदा साहिब के नेतृत्व में, जिन्होंने कर्नाटक के निज़ाम होने के नासिर जंग के दावे का समर्थन करने के लिए कर्नाटक के नवाब अनवारुद्दीन मुहम्मद खान को उखाड़ फेंकने की मांग की थी।

   अम्बूर युद्ध: भारत में अंग्रेजी राज शुरू होने की                      कहानी!

अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 साल राज किया और एक लंबी खूनी जंग के बाद जाकर कहीं भारत को अपनी आज़ादी मिली.

अगर भारत में अंग्रेजों के आगमन की बात करें, तो ब्रिटिश अकेले नहीं थे, जिन्होंने भारत आकर अपना व्यापार शुरू किया था, बल्कि उनसे पहले डच और फ्रेंच लोग यहां अपनी फैक्टरियां लगा चुके थे.

इसके चलते भारतीयों को गुलाम बनाने और भारत पर राज करने से पहले अंग्रेजों के सामने फ्रेंच और डच मुसीबत बनकर खड़े थे. इसलिए उन्हें भारत से खदेड़ना उनकी प्राथमिकता थी.

इसी का नतीजा रहे कर्नाटक में लड़े गए कुछ ऐतिहासिक युद्ध, जिन्होंने भारत में अंग्रेजों के पैर जमाने में मदद की.इन युद्ध की आड़ में अंग्रेजी व फ्रांसीसी सेना युद्ध के मैदान में आमने सामने आ गईं.

आज हम बात करने जा रहे हैं दूसरे कर्नाटक युद्ध की पहली लड़ाई की, जिसे अम्बूर का युद्ध भी कहा जाता है.

यह युद्ध चार मुगल शासकों के मध्य हैदराबाद और कर्नाटक पर शासन के लिए हुआ था, जिसमें अंग्रेजी व फ्रांसीसी सेना ने अलग-अलग पक्ष का साथ दिया था.

तो चलिए जानते इस युद्ध की कहानी को –

निजाम की मौत से हुई शुरूआत

कर्नाटक युद्ध की पहली लड़ाई यानी अम्बूर का युद्ध भारतीय आधुनिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

इस युद्ध के बाद भारत में अंग्रेजों की स्थिति को मजबूती मिली.यह बात है साल 1748 की, जिस समय इंग्लैंड और फ्रांस शांति से बैठकर भारत में अपना व्यापार चला रहे थे. इसी बीच अचानक हैदराबाद के निजाम असफ जहां प्रथम या चिनकिलच खां की मृत्यु हो गई है.

निजाम-उल-मुल्क की मौत के बाद उनका पोता मुजफ्फर जंग निजाम घोषित कर दिया गया, मुगल सम्राट अहमद शाह बहादुर ने इस निर्णय की पुष्टि कर दी, लेकिन निजाम-उल-मुल्क के बेटे नासीर जंग ने इसे खारिज कर दिया.और इसके बाद उसने तख्तापलट कर मुजफ्फर जंग को हटाकर हैदराबाद शहर पर कब्जा कर लिया.हैदराबाद की  गद्दी की चाह में गृह युद्ध की स्थिति बन गई  और यह गृह युद्ध आगे चलकर दूसरे कर्नाटक युद्ध का कारण बना.अब हैदराबाद के तख्त पर अपना अधिकार जमाने के लिए असफ का बेटा मीर अहमद अली खान यानी नासिर जंग और असफ का पोता मुज़फ्फर जंग आमने-सामने थे.

                     निजाम की मौत से हुई शुरूआत

मुजफ्फर जंग को मिला चंदा साहिब का साथ

मुजफ्फर जंग ने युद्ध में अपनी बढ़त बनाने के लिए फ्रांसीसी सेना के साथ संधि कर ली.संधि के बाद सबसे पहले मुज़फ्फर जंग ने फ्रेंच गवर्नर जनरल जॉसफ फैंकोस डुप्लेक्स की मदद से दोस्त खान के दामाद चंदा साहिब को मराठों की कैद से आजाद करवाया.दरअसल मुजफ्फर जंग चाहता था कि नासीर जंग का सामना करने से पहले वह उसके सहयोगियों को खत्म कर दे और नासीर जंग को सहयोग कर्नाटक के नवाब मुहम्मद अनवरुद्दीन से मिल रहा था.इसलिए मुज़फ्फर जंग ने अनवरुद्दीन के दुश्मन चंदा साहिब से हाथ मिला लिया.

अंग्रेजी प्रभाव कम करना चाहते थे फ्रांसीसी

वहीं, मुगलों की इस आपसी लड़ाई की आड़ में अंग्रेजों और फ्रांसिसियों के बीच अपना अलग ही युद्ध चल रहा था.दरअसल, फ्रांसीसी चाहते थे कि वह किसी तरह कर्नाटक में अंग्रेजों के प्रभाव को कम कर दें और इसके लिए जरूरी था कि कर्नाटक में नवाब की गद्दी पर अनवरुद्दीन की बजाए कोई ऐसा शख्स बैठे, जो फ्रेंच सेना का हितैषी हो न कि अंग्रेजों का.इसलिए उन्होंने मोहम्मद अनवरुद्दीन के प्रतिद्वंधि चंदा साहिब को समर्थन देने का फैसला किया.वहीं, फ्रेंच आर्मी और मुज़फ्फर जंग का समर्थन मिलने के बाद अब चंदा साहिब के पास भी एक मौका था कि वह अनवरुद्दीन के खिलाफ युद्ध छेड़े और उसमें विजय हासिल कर कर्नाटक की राजधानी अरकोट का नवाब बन जाए.अपने इरादों को हकीकत बनाने के लिए चंदा साहिब ने मुज़फर जंग के साथ मिलकर अरकोट के नवाब अनवरुद्दीन मुहम्मद खान के खिलाफ षड्यंत्र रचने शुरू कर दिए.हालांकि ऐसा नहीं था कि अंग्रेज फ्रांस द्वारा चली जा रही इन सारी गतिविधियों से अंजान बैठे थे.

क्लाइव की सूझबूझ ने जिताया अरकोट

आखिरकार, साल 1749 में अंग्रेजी सेना का संरक्षण प्राप्त नवाब मुहम्मद अनवरुद्दीन को अम्बु‍र के युद्ध में फ्रेंच सेना के समक्ष उतरना पड़ा.

अपनी वृद्ध अवस्था के कारण नवाब अनवरुद्दीन ज्यादा समय तक युद्ध में अपनी भागीदारी नहीं दे पाए और युद्ध के दौरान गोली लगने से उनकी मौत हो गई.

नवाब की मौत के बाद अरकोट की गद्दी पर चंदा साहिब बैठ गया.

इस दौरान अनवरुद्दीन का बेटा मुहम्मद अली खान अपनी जान बचाकर भाग निकला और त्रिचनापल्ली में जाकर छिप गया. जिसे पकड़ने के लिए फ्रेंच आर्मी का एक बड़ा दस्ता यहां तैनात था.

इन मुश्किल हालातों में नासीर जंग ने नवाब के बेटे के समर्थन में अपनी सेना भेज दी.

इस दौरान अंग्रेजी अधिकारी राबर्ट क्लाइव ने सूझबूझ से एक उपाय निकाला.

उन्होंने सुझाव दिया कि क्यों न आधी सेना को अरकोट भेज कर चंदा साहिब व मुज़फ्फर जंग को घेर लिया जाए.

क्लाइव के सुझाव पर सभी ने सहमति जताई और क्लाइव के नेतृत्व में नासीर जंग के सैनिक व ब्रिटिश आर्मी के 510 सैनिकों की एक टुकड़ी अरकोट पर हमला करने गई.

इस दौरान रोबर्ट क्लाइव और उनकी टुकड़ी ने अरकोट पर कब्जा कर लिया.

इस बात का पता जब त्रिचनापल्ली में तैनात फ्रेंच आर्मी को चला तो यहां से आधी सेना अरकोट के लिए रवाना हो गई.

इसी बीच सेना के बंट जाने का फायदा उठाकर ब्रिटिश आर्मी ने त्रिचनापल्ली को भी अपने अधिकार में कर लिया.

Siege of Arcot with Robert Clive. (Pic: pinterest)

वह भी फ्रांस को भारत से खत्म करने के लिए नवाब मुहम्मद अनवरुद्दीन और नासिर जंग को पूरा सहयोग दे रहे थे.


Reactions

Post a Comment

1 Comments

  1. Informative post for us, thanks for sharing this blog with us. This blog is very helpful for
    IAS Coaching
    IAS Coaching in Delhi

    ReplyDelete
Emoji
(y)
:)
:(
hihi
:-)
:D
=D
:-d
;(
;-(
@-)
:P
:o
:>)
(o)
:p
(p)
:-s
(m)
8-)
:-t
:-b
b-(
:-#
=p~
x-)
(k)