भोजपत्र क्या होता है, क्या आप इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?

 भोजपत्र :- भोजपत्र, भोज नामक वृक्ष की छाल है।जिसका प्रयोग प्राचीन काल में ग्रंथो को लिखने में कागज के रूप में किया जाता था।

भोज वृक्ष

चित्र स्त्रोत:- गूगल

BlinkMacSystemFont, "Segoe UI", Roboto, Oxygen-Sans, Ubuntu, Cantarell, "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px;">भोजपत्र का नाम आते ही उन प्राचीन पांडुलिपियों का विचार आता है, जिन्हे भोजपत्रों पर लिखा गया है। कागज की खोज के पूर्व हमारे देश में लिखने का काम भोजपत्र पर किया जाता था। भोजपत्र पर लिखा हुआ सैकड़ों वर्षो तक संरक्षित रहता है, परन्तु वर्तमान में भोजवृक्ष गिनती के ही बचे हुये हैं। हमारे देश के कई पुरातत्व संग्रहालयों में भोजपत्र पर लिखी गई सैकड़ों पांडुलिपियां सुरक्षित रखी है। जैसे हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का संग्रहालय। कालीदास ने भी अपनी कृतियों में भोज-पत्र का उल्लेख कई स्थानों पर किया है। उनकी कृति कुमारसंभवम् में तो भोजपत्र को वस्त्र के रूप में उपयोग करने का जिक्र भी है। भोजपत्र का उपयोग प्राचीन रूस में कागज की मुद्रा 'बेरेस्ता' के रूप में भी किया जाता था। इसका उपयोग सजावटी वस्तुओं और चरण पादुकाओं-जिन्हे 'लाप्ती' कहते थे, के निर्माण में भी किया जाता था। सुश्रुत एवं वराद मिहिर ने भी भोजपत्र का जिक्र किया है। भोजपत्र का उपयोग काश्मीर में पार्सल लपेटने में और हुक्कों के लचीले पाइप बनाने में भी किया जाता था। वर्तमान में भोजपत्रों पर कई यंत्र लिखे जाते है।

दरअसल, भोजपत्र भोज नाम के वृक्ष की छाल का नाम है, पत्ते का नहीं। इस वृक्ष की छाल ही सर्दियों में पतली-पतली परतों के रूप में निकलती हैं, जिन्हे मुख्य रूप से कागज की तरह इस्तेमाल किया जाता था। भोज वृक्ष हिमालय में 4,500 मीटर तक की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह एक ठंडे वातावरण में उगने वाला पतझड़ी वृक्ष है, जो लगभग 20 मीटर तक ऊंचा हो सकता है। भोज को संस्कृत में भूर्ज या बहुवल्कल कहा गया है। दूसरा नाम बहुवल्कल ज्यादा सार्थक है। बहुवल्कल यानी बहुत सारे वस्त्रों/छाल वाला वृक्ष। भोज को अंग्रेजी में हिमालयन सिल्वर बर्च और विज्ञान की भाषा में बेटूला यूटिलिस कहा जाता है। यह वृक्ष बहुउपयोगी है। इसके पत्ते छोटे और किनारे दांतेदार होते है। वृक्ष पर शहतूत जैसी नर और मादा रचनाएं लगती है, जिन्हे मंजरी कहा जाता है। छाल पतली, कागजनुमा होती है, जिस पर आड़ी धारियों के रूप में तने पर मिलने वाले वायुरंध्र बहुत ही साफ गहरे रंग में नजर आते है। यह लगभग खराब न होने वाली होती है, क्योंकि इसमें रेजिनयुक्त तेल पाया जाता है। छाल के रंग से ही इसके विभिन्न नाम [लाल, सफेद, सिल्वर और पीला] बर्च पड़े है।

भोज पत्र की बाहरी छाल चिकनी होती है, जबकि आम, नीम, इमली, पीपल, बरगद आदि अधिकतर वृक्षों की छाल काली भूरी, मोटी, खुरदरी और दरार युक्त होती है। यूकेलिप्टस और जाम की छाल मोटी परतों के रूप में अनियमित आकार के टुकड़ों में निकलती है। भोजपत्र की छाल कागजी परत की तरह पतले-पतले छिलकों के रूप में निकलती है।

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